अनिल सिंह
: भ्रष्टाचार के आरोपी राजन मित्तल बढ़ा रहे आरएनएन की शोभा : भ्रष्टाचार की नींव पर रखी गई कोई भी इमारत मजबूत नहीं बन सकती। बनारस में भी ठीक ऐसा ही हुआ। तय मानकों की अनदेखी, लापरवाही, हड़बड़ी और गैरजिम्मेदारी की पिलर पर रखे गए भ्रष्टाचार के बीम ने 15 हंसती-खेलती जिंदगियां निगल लिया। जब इन असामयिक मौतों के कारणों की परत-दर-परत जांच शुरू हुई तो पता चला कि ईमानदारी की ठेका लेने वाली सरकार ने सेतु निगम का मुखिया भ्रष्टाचार के एक ऐसे आरोपी को बना रखा है, जिसकी तूती सपा और बसपा के भ्रष्ट शासनकाल में जमकर बोलती थी।
सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई कि पूरे प्रदेश में डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के विभाग को एक ईमानदार अधिकारी नहीं मिला? क्या पूरे लोक निर्माण विभाग में ईमानदार अधिकारियों की कमी हो गई है? फिर क्या कारण था कि विवादित और भ्रष्ट कारनामों के आरोपी इंजीनियर राजन मित्तल को सेतु निगम का प्रबंध निदेशक बनाने के साथ राजकीय निर्माण निगम का अतिरिक्त प्रभार दे दिया गया? और मजबूरी में सेतु निगम से हटाने के बावजूद राजकीय निर्माण निगम का एमडी बनाए रखा गया है?
भ्रष्टों का चहेता ‘राजन’
लखनऊ : शिव की नगरी काशी, जो सदानीरा गंगा और बेलौस-मस्तमौला जिंदगी की पहचान सदियों से संभाले आ रही है, भ्रष्टाचार के हादसे ने उसके कांधे पर अचानक लाशों का ऐसा बोझ डाल दिया, जिससे उबरना बनारस के लिए बहुत आसान नहीं है। यह हादसा तब और तकलीफदेय हो जाता है, जब ईमानदार सरकार चलाने का दावा करने वाली भाजपा के कार्यकाल में एक ऐसे अधिकारी को सेतु निगम का महाप्रबंधक बना दिया जाता है, जिसके ऊपर भ्रष्टाचार के तमाम दाग पहले से चस्पा रहता है। और इस अधिकारी के नेतृत्व वाला विभाग बनारस को ऐसा जख्म और भयावह मंजर दे जाता है, जिसे भूलना आसान नहीं है।
क्यों लोक निर्माण विभाग और विभागीय मंत्री जिंदा मक्खी निगलने को मजबूर हुए? आखिर भ्रष्टाचार के आरोपी इस अधिकारी में ऐसी कौन सी खूबी थी, जिसकी बिनाह पर उसे दो-दो विभागों का प्रभार सौंप दिया गया? बसपा और सपा सरकार को भ्रष्ट कहने वाली कथित ईमानदार भाजपा सरकार में भी राजन मित्तल कैसे प्राइम पोस्टिंग पा जाता है? दरअसल, इस तथ्य को समझना कोई राकेट साइंस नहीं है कि क्यों भ्रष्टाचार का आरोपी डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के विभाग को रास आ गया? लोक निर्माण विभाग की जिम्मेदारी संभालने वाले डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य बसपा के नसीमुद्दीन और सपा के शिवपाल सिंह यादव के नक्शेकदम पर बढ़ चले हैं।
भाजपा और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ईमानदार सरकार देने का दावा करते हैं, लेकिन 15 मई को बनारस में फ्लाईओवर हादसा नहीं हुआ होता तो शायद ईमानदारी की आड़ में की जा रही बेईमानी की कलई भी नहीं खुलती। डिप्टी सीएम केशव मौर्य के नेतृत्व में लोक निर्माण विभाग पिछली बसपा और सपा सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार को पीछे छोड़ने की राह पर चल निकला है। चुन-चुन कर भ्रष्टाचारी अधिकारी, इंजीनियर लोक निर्माण विभाग और इसकी अनुसांगिक, सहयोगी ईकाइयों में जुटाए जा रहे हैं। जिलों तक में लोक निर्माण विभाग उन्हीं अधिकारियों और इंजीनियरों को प्रमुखता दे रहा है, जिनके दामन में भ्रष्टाचार के दाग हैं। कहा जाता है कि अति सर्वत्र वर्जयेत, और इसी अति भ्रष्टाचार की भेंट वो 15 जिंदगियां चढ़ गईं, जिन्हें ना जाने कितने सपने पूरे करने थे, ना जाने अपने लोगों को कितनी खुशियां देनी थीं?
डिप्टी सीएम तो शायद इस भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को सेतु निगम से हटाते ही नहीं अगर उनके ऊपर चौतरफा दबाव और नैतिकता का तकाजा नहीं होता। केशव प्रसाद मौर्य शपथ ग्रहण के बाद से ही बुलेट रफ्तार से योगी आदित्यनाथ को ओवरटेक करने में लगे हुए हैं। चाहे पंचम तल पर बैठने का मसला रहा हो या फिर सरकार के एक साल पूरे होने पर प्रेसवार्ता का, केशव सीएम को लंगड़ी मारने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे हैं। जिन लोगों को योगी से लाभ नहीं मिल पा रहा है, वह केशव प्रसाद मौर्य का खास बनकर कमाई करने में जुटा हुआ है। ऐसे लोगों की कोशिश यही है कि श्री मौर्य सीएम बन जाएं तो उनके कमाने-खाने का दायरा ज्यादा बढ़ जाएगा।
हालांकि कुछ राजनीतिक सिपहसालार मानते हैं कि योगी-मोदी के बीच आग में घी डालने का काम दूसरे डिप्टी सीएम डा. दिनेश शर्मा के लोग कर रहे हैं, जिनकी चाहत है कि योगी-केशव आपस में उलझे रहें, और शीर्ष नेतृत्व इन दोनों को किनारे करके डा. शर्मा को सीएम बना दे! इधर, योगी को आर्थिक कदाचार में किसी भी तरह घेरने में असफल रहे लोग अब उन्हें जातिवादी बताकर घेरने की मुहिम चला रखे हैं। इसका सीधा कारण यह है कि योगी से भ्रष्ट लोगों को कोई आर्थिक लाभ नहीं मिल पा रहा है।
खैर, असली सवाल यह है कि राजन मित्त्ल जैसे भ्रष्टाचार के आरोपी अधिकारी को आखिर किस उद्देश्य से सेतु निगम के साथ राजकीय निर्माण निगम का प्रबंध निदेशक बना दिया गया? क्या सरकार को राजन मित्तल के भ्रष्ट कारनामों की जानकारी नहीं थी? क्या सरकार ने सेतु निगम की जिम्मेदारी देने से पहले राजन मित्तल के बारे में कोई जांच-पड़ताल नहीं कराई थी? क्या किसी भ्रष्ट अधिकारी ने सरकार को गुमराह करके राजन मित्तल को यह जिम्मेदारी सौंप दी? कई सवाल हैं, जो इशारा करते हैं कि जानबूझकर राजन मित्तल को इतनी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी दी गई ताकि भ्रष्टाचार का खेल चलता रहे।
राजन मित्तल के रसूख का असर है कि बनारस में हुए हादसे के बाद चौतरफा दबाव के बाद सरकार ने उन्हें सेतु निगम से तो हटा दिया, लेकिन उससे बड़े विभाग की जिम्मेदारी अब भी मित्तल के पास ही है। कड़ी कार्रवाई के नाम पर नाटक करते हुए सेतु निगम से राजन मित्तल भले हटा दिए गए हों और लोक निर्माण विभाग के चीफ इंजीनियर जेके श्रीवास्तव को नया एमडी बना दिया गया हो, लेकिन राजकीय निर्माण निगम अब भी मित्तल के पास है। बसपा शासनकाल में नसीमुद्दीन सिद्दीकी और उनके पीएस सीएल वर्मा के इशारे पर काम करने वाले राजन मित्त्ल सपा सरकार में शिवपाल सिंह यादव जैसे भ्रष्ट मंत्री के खास हो गए।
आगरा में 1400 करोड़ के काम राजन मित्तल ने शिवपाल के इशारे पर मनमाने ढंग से करवाए। जांच शुरू हुई तो इसकी परतें खुलनी शुरू हुई, लेकिन भाजपा सरकार आई तो उसे भी ईमानदार इंजीनियरों की जगह भ्रष्ट राजन मित्तल ही रास आए। उनके खिलाफ चल रही जांचें भी ठंडे बस्ते में चली गईं। 11 जुलाई 2017 को सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोपी राजन मित्तल को झांसी से तलाश कर सेतु निगम का अध्यक्ष बनाया।
जब राजन विभागीय लोगों की मंशानुरूप काम करने लगे तो उन्हें बीते 21 अप्रैल को राजकीय निर्माण निगम के महाप्रबंधक की अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप दी गई। यह पद प्रमुख अभियंता स्तर का है, जबकि राजन मित्तल चीफ इंजीनियर लेवल-टू के अधिकारी हैं। इसके बावजूद वरिष्ठों को सुपरशीड करते हुए राजकीय निर्माण निगम की जिम्मेदारी भ्रष्टचार के आरोपों के सिरमौर राजन मित्तल को सौंप दी गई। अब यह समझना मुश्किल नहीं है कि क्यों सीनियरों को सुपरसीड करते हुए एक जूनियर को राजकीय निर्माण निगम जैसे महत्वपूर्ण विभाग का महाप्रबंधक बना दिया गया? राजन में ऐसी कौन सी खूबी थी कि सरकार ने सीनियर इंजीनियरों को नजरदांज करते हुए उन्हें प्रबंध निदेशक बना दिया गया?
बनारस हादसे से पहले भी मित्तल पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते रहे हैं। बसपा सरकार में इनके अधिशासी अभियंता के पद पर तैनाती के दौरान इनके ऊपर कई बड़े-बड़े टेंडरों को टुकड़ों में काटकर चहेतों को उपकृत करने के आरोप लगे थे। शिकायतें भी की गईं, लेकिन सत्ता से नजदीकी होने के चलते किसी भी मामले में जांच नहीं हुई। बाद में समाजवादी पार्टी खेमे के कुछ ठेकेदारों ने जब इनकी शिकायत वरिष्ठ अधिकारियों से की तो वहां भी जांच को ठंडे बस्ते में डाल दिया गया, क्योंकि इस जांच के बीच टी. राम आ गए। पीडब्ल्यूडी के तत्कालीन प्रमुख अभियंता एवं विभागाध्यक्ष टी. राम मायावती के करीबी अधिकारी थे, जिन्होंने सारी जांच को आसानी से दबवा दिया।
बसपा शासनकाल में राजन मित्तल ने जमकर अपने लोगों को उपकृत किया। आगरा में तो सारे नियमों को ताक पर रख दिया। इनके खिलाफ जितनी भी शिकायतें हुईं सब टी. राम के सौजन्य से ठंडे बस्ते में चली गईं। आगरा में भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बावजूद वर्ष 2012 में बसपा सरकार बदलने के बाद राजन मित्तल तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव का नजदीकी बन गया। सारे भ्रष्टाचार की अनदेखी करते हुए शिवपाल ने राजन मित्तल को राज्य सेतु निगम का प्रबंध निदेशक बना दिया।
मित्तल के सेतु निगम के प्रबंध निदेशक बनते ही जिन एसपी नेताओं और ठेकेदारों ने अधिशासी अभियंता रहते मित्तल की शिकायत की थी, उन्होंने दोबारा तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से भी इनकी शिकायत की। शुरुआती दौर में इस मामले पर भी कोई सुनवाई नहीं हुई। जब अखिलेश और शिवपाल के बीच ठन गई तो अखिलेश ने एक मामले में इनके खिलाफ सतर्कता जांच के आदेश दिए। अखिलेश के दबाव में तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव ने राजन मित्तल को सेतु निगम के एमडी के पद से हटाना पड़ा।
प्रदेश में बीजेपी सरकार बनने के बाद उन्हें झांसी स्थानांतरित किया गया था, लेकिन इस भ्रष्टाचारी को प्रतिनियुक्ति पर दोबारा तैनाती दिलवा दी गई। सितंबर 2017 में बीजेपा के नेताओं ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पास मित्तल की कारगुजारियों को लेकर शिकायत भी की थी, लेकिन केशव प्रसाद मौर्य के दबाव के चलते इस भ्रष्टाचारी पर कोई कार्रवाई नहीं हुई। सेतु निगम के बाद राजन को राजकीय निर्माण निगम की जिम्मेदारी भी दे दी गई, जिसका दायरा सेतु निगम से भी बड़ा है।
राजन मित्तल के नेतृत्व वाले राजकीय निर्माण निगम का कार्यक्षेत्र कितना व्यापक है, इसे इससे भी समझा जा सकता है कि वर्तमान में उसके पास प्रदेश व देश के 14 राज्यों में 1800 से अधिक प्रोजेक्ट हैं। इनमें 100 करोड़ रुपये से अधिक के 60 काम हैं, जबकि 50 करोड़ से अधिक कामों की संख्या 108 है। वर्तमान में राजकीय निर्माण निगम लगभग 11, 500 करोड़ रुपये के काम करा रहा है। आखिर सरकार ने इस भ्रष्ट अधिकारी में ऐसा कौन सा गुण खोज लिया कि इसे 15 लोगों को असमय मौत के गाल में ढकेलने के बावजूद राजकीय निर्माण निगम का एमडी बनाये रखा गया है।
मनमाने ढंग से बन रहा था फ्लाईओवर
हादसे के बाद तत्काल गठित हुई जांच कमेटी की अंतरिम रिपोर्ट में ही खुलासा हो गया कि सेतु निगम फ्लाईओवर का निर्माण मानकों को दरकिनार करके कर रहा था। फ्लाईओवर ड्राइंग या डिजाइन की मंजूरी तक नहीं ली गई थी। बीम के लिए तय मानकों की जांच भी नहीं किया जा रहा था। बीम में कितना कंक्रीट, सीमेंट और रेत इस्तेमाल हो रही है, इसका कहीं भी कोई रिकॉर्ड नहीं है। मौके पर इंजीनियरों की मौजूदगी के बावजूद भारी भरकम बीम को क्रॉस बीम में बांधे बिना ही फ्लाईओवर पर लगाया जा रहा था।
उक्त सारी बातें उस अंतरिम रिपोर्ट में सामने आई है, जो हादसे के तत्काल बाद की गई थी। जांच रिपोर्ट में उत्तर प्रदेश राज्य सेतु निगम के प्रबंध निदेशक राजन मित्तल के अलावा 5अन्य अधिकारियों को हादसे का जिम्मेदार पाया गया है। इस हादसे में राजन मित्तल के अलावा जिन अधिकारियों को जिम्मेदार माना गया है, उनमें मुख्य परियोजना प्रबंधक एससी तिवारी, परियोजना प्रबंधक केआर सूद, पूर्व परियोजना प्रबंधक गेंदालाल, सहायक परियोजना प्रबंधक राजेंद्र सिंह, अवर परियोजना प्रबंधक लाल चंद और राजेश पॉल शामिल हैं।
हादसे के तत्काल बाद सारे जिम्मेदारों को निलंबित कर दिया गया था, जबकि एमडी राजन मित्तल को हटा दिया गया था। अंतरिम रिपोर्ट में जो बातें सामने आई हैं, उनमें सबसे महत्वपूर्ण यह है कि निर्माणस्थल के आसपास अलर्ट के बाद भी ट्रैफिक डाइवर्ट नहीं किया गया था। जांच में पाया गया कि –
– इस फ्लाई ओवर का डिजाइन या ड्राइंग किसी भी सक्षम विभागीय अधिकारी ने अनुमोदित ही नहीं किया है।
– बीम और फ्लाईओवर के निर्माण में इस्तेमाल हो रही कंक्रीट की कोई चेकलिस्ट ही नहीं है, जिससे पता चले कि निर्माण में इस्तेमाल होने वाली सामग्री मानकों के अनुरूप है या नहीं।
– निर्माणाधीन फ्लाईओवर के नीचे से चलने वाले ट्रैफिक के लिए कोई डाइवर्जन या वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की गई थी। ना तो निर्माण वाले इलाके में बैरकेटिंग की गई थी।
– कॉलम के बीच में ढाली गई बीमों को क्रॉस बीम्स से नहीं बांधा गया था। उन्हें बिना किसी सहारे के ऐसे ही रख दिया गया। जिन अधिकारियों के जिम्मे निर्माणाधीन फ्लाईओवर के निरीक्षण की जिम्मेदारी थी, उन्होंने कागजों में निरीक्षण तो किया है, लेकिन उन्होंने इसमें क्या कम या ज्यादा पाया,इस पर कोई टिप्पणी अंकित नहीं की है।
भ्रष्टों के प्रिय राजन मित्तल
इंजीनियर राजन मित्तल प्रदेश के चुनिंदा संपर्कसाध्य अधिकारियों में शुमार किए जाते हैं। पिछली समाजवादी पार्टी सरकार में तत्कालीन लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव राजन मित्तल की खूबी पर मोहित थे तो भाजपा सरकार में केशव प्रसाद मौर्य को इन पर प्यार आ गया। शिवपाल ने आगरा में नियुक्ति के दौरान गंभीर आरोप लगने के बावजूद राजन मित्तल को सेतु निगम का अध्यक्ष बना दिया था। प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में भाजपा की सरकार बनने के बाद उन्हें आगरा से झांसी स्थानांतरित किया गया था, लेकिन ना जाने किस दबाव के बाद इस आदेश को रद्द कर दिया गया तथा राजन मित्तल को प्रतिनियुक्ति पर दोबारा तैनाती दे दी गई।
बसपा शासनकाल में भी राजन मित्तल का ऐसा ही जलवा था। सरकारें बदलती रहीं, लेकिन मित्तल के पराक्रम और शौर्य में कोई कमी नहीं आई। राजन मित्तल का आगरा का कार्यकाल सवालों में लगातार घिरा रहा था। सपा सरकार में लोक निर्माण विभाग के अधीक्षण अभियंता, आगरा वृत्त के पद पर तैनाती के दौरान एक जाति विशेष को मनमाने ढंग से टेंडर बांटने तथा नियमों के उल्लंघन तक के आरोप लगे थे। इससे पहले मित्तल बसपा के शासनकाल में भी पीडब्ल्यूडी खंड-2 में अधिशासी अभियंता के पद पर तैनाती के दौरान कई खेल किए।
सपा सरकार में भी आगरा में ही अधीक्षण अभियंता बन गए। 13 जुलाई 2016 से 24 जून 2017 तक इस पद पर रहे। आगरा कार्यकाल के दौरान टेंडरों में नियमों के उल्लंघन की शिकायतें हुई थीं। इनमें सबसे ज्यादा शिकायतें पूलिंग की थीं। उन पर एक तेल कारोबारी की कंपनी पर ज्यादा मेहरबानी करने के आरोप भी लगे। कंपनी की एफडीआर पर सवाल उठे, लेकिन इसकी जांच नहीं कराई गई। सेतु निगम वर्तमान में 183 छोटे-बड़े प्रोजेक्टों पर काम कर रहा है, जिनकी लागत 5520.11 करोड़ रुपए है। इनमें 68 आरओबी यानी रेलवे ओवरब्रिज तथा 115 फ्लाईओवर और ब्रिज शामिल हैं। इनकी लागत क्रमश: 2056.27 तथा 3463.94 करोड़ है।
सेतु निगम की सेहत खराब
अपनी उत्कृष्टता और बेहतरीन निर्माण के लिए देश-विदेश तक अपना डंका बजाने वाले उत्तर प्रदेश सेतु निगम के पास अब राज्य से बाहर कोई बड़ा प्रोजेक्ट नहीं है। उत्तर प्रदेश सरकार ने राज्य के भीतर बड़े पुल एवं फ्लाईओवर के डिजाइन एवं निर्माण के लिए जब सेतु निगम को स्थापित किया था, तो शायद उसे भी उम्मीद नहीं रही होगी कि यह निर्माण संस्थान राज्य के बाहर भी अपनी पहचान स्थापित करेगा। उत्तर प्रदेश सेतु निगम को स्थापित हुए चार दशक से ज्यादा बीत चुके हैं। उम्र के लिहाज से यह संस्थान अब पूरी तरह जवान हो चुका है, लेकिन इतने वर्षों के अनुभव के बाद अब सेतु निगम पर बुढ़ापा हावी होता जा रहा है।
इस संस्थान की साख लगातार गिरती जा रही है, जिसका प्रमाण है कि सेतु निगम के कार्य विदेश में कौन कहे, देश के भीतर ही इसे बड़े प्रोजेक्ट हासिल नहीं हो पा रहे हैं। यूपी सेतु निगम प्रदेश के सेतु निर्माण कार्यों तक ही सिमट कर रह गया है। सेतु निगम की कार्य क्षमता तो घट रही है गुणवत्ता और विश्वसनीयता भी पहले से कम हुई है। उच्च स्तरीय इंजीनियरों की संस्थान में लगातार कमी होती जा रही है। खाली पदों को भरने की बजाय संविदा के जरिए काम नहीं कराया जा रहा बल्कि खेल किया जा रहा है। इसका सीधा असर सेतु निगम की क्षमता पर पड़ा है।