अनिल सिंह
: क्यों अधूरी जानकारी दर्ज है भारतीय माइक्रो क्रेडिट की वेबसाइट पर : आखिर क्यों नहीं दिया जाता सवालों का जवाब : प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और केंद्र सरकार ने मुद्रा योजना को लेकर जमकर ढिंढोरा पीटा था, लेकिन हकीकत यह है कि इस काम में सिडबी की पार्टनर बनी तमाम एमएफआई के कामों में पारदर्शिता ना होने के चलते उन्हें कटघरे में खड़ा किया जा रहा है। भारतीय माइक्रो क्रेडिट कंपनी, जो रिजर्व बैंक में रजिस्टर्ड नहीं है, उसे 130 करोड़ से ज्यादा रुपए मुद्रा योजना के तहत लोन के लिए दे दिए गए। कंपनी से जब इसके बारे में सूचना मांगी गई कि किन-किन लोगों को इस योजना के तहत लाभाविंत किया गया तो कंपनी ने कोई जवाब नहीं दिया। कंपनी की कुछ ही वर्षों में बढ़ी आर्थिक ताकत को लेकर एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने आरोप लगाया है कि कंपनी में कुछ नेताओं के काला धन तो लगे ही हुए हैं, सिडबी ने भी रिजर्व बैंक में कंपनी का रजिस्ट्रेशन नहीं होने के बावजूद बीएमसी को पैसे दिए हैं। अब आरोपों में कितनी सच्चाई है यह जांच का विषय है, लेकिन सवालों से भागती कंपनी और उसकी वेबसाइट पर आधी-अधूरी जानकारी उसे कटघरे में जरूर खड़े करती है।
बीएमसी का काला खेल!
लखनऊ : एक एमएफआई यानी माइक्रो फाइनेंस इंस्टीट्यूशन, जो भारतीय रिजर्व बैंक में बैंकिंग लेनदेन में रजिस्टर्ड नहीं है, उसका नाम प्रधानमंत्री मुद्रा योजना की साइट पर लोन देने वाली कंपनियों में लिस्टेड हो जाता है। जब कोई लोन के लिए इस एमएफआई का दरवाजा खटखटाता है तो उसे निराशा ही हाथ लगती है। कंपनी की तरफ से कहा जाता है कि वह व्यक्तिगत लोन नहीं देती है। वह केवल महिला समूहों को लोन देती है और ई-रिक्शा फाइनेंस करती है। इसके अतिरिक्त वह किसी प्रकार का लोन नहीं देती है। अभी उसने लोन वितरण के लिए आवेदन कर रखा है।
दरअसल, यह एमएफआई लोन देने की अर्हता भी नहीं रखता है, सीधे यह किसी को लोन भी नहीं देता है, इसके बावजूद इस कंपनी का नाम सिडबी द्वारा स्टेबलिश मुद्रा की साइट पर पार्टनर के रूप में दर्ज है। आखिर इस एफएफआई के पास ऐसी कौन सी योग्यता है, जो सिडबी इसका नाम मुद्रा पार्टनर के तौर पर दर्ज कर रखा है, जबकि यह कंपनी व्यक्तिगत लोन तक सेंक्शन नहीं करती है?
इस कंपनी के किन-किन जिलों में कार्यालय हैं, इसकी साइट पर भी इसका पूरा जिक्र नहीं है। इसके ब्रांच किन-किन राज्यों में हैं, इसका भी कोई अता-पता नहीं है, इसके बावजूद सिडबी इस कंपनी को मुद्रा योजना के तहत 128 करोड़ का लोन देती है, जबकि बीएमसी केवल महिला समूहों को ऋण प्रदान करती है, फिर क्यों आम जनता के साथ मुद्रा योजना के नाम पर धोखा किया जा रहा है? क्यों सिडबी अपनी ही विश्वसनीयता को कटघरे में खड़ा करने को मजबूर है?
दरअसल, जुमलों की बिसात पर बनी भाजपा की नरेंद्र मोदी सरकार में बैंकों का एनपीए ऐसे ही नहीं बढ़ रहा है। जनता के पैसों को लेकर सरकार के चहेते ऐसे ही नहीं भाग रहे हैं बल्कि जानबूझकर यह खेल खेला जा रहा है। इसका जीता जागता उदाहरण है एक एमएफआई भारतीय माइक्रो क्रेडिट यानी बीएमसी। यह कंपनी किसी भी स्थिति में प्रधानमंत्री मुद्रा योजना के तहत व्यक्तिगत लोन देने की अथराइज्ड कंपनी नहीं है, इसके बावजूद यह सिडबी की लिस्ट में एमएफआईज में सबसे ऊपर है। इस कंपनी की आय का मूल स्रोत क्या है, इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट नहीं है। खुद को शेयर होल्डिंग कंपनी दर्शाने वाली बीएमसी किसी को व्यक्तिगत लोन नहीं देती है, बावजूद इसके सिडबी की साइट पर इसका नाम लिस्टेड होने का क्या मतलब है?
प्रधानमंत्री मुद्रा योजना यानी पीएम माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनैन्स एजेंसी लिमिटेड के अंतर्गत यह कंपनी सिडबी की साइट पर मुद्रा के पार्टनर के रूप में लिस्टेड की गई है, लेकिन हकीकत यह है कि कंपनी ने अब तक एक भी व्यक्ति का पर्सनल लोन मंजूर नहीं किया है। कंपनी के नंबर पर काल किए जाने पर भी कोई स्पष्ट बात नहीं बताई जाती है। कंपनी के ज्यादातर नंबर उठते नहीं हैं। कुछ नंबर दिन-रात बिजी बताते हैं। कुछ नबरों पर बात होती है तो बताया जाता है कि मुद्रा योजना के अंतर्गत कोई लोन नहीं दिया जाता है।
फिर सवाल यह है कि सिडबी ने क्योंकर भारतीय माइक्रो क्रेडिट को मुद्रा योजना का पार्टनर बना रखा है? क्या इसके जरिए बीएमसी को कोई लाभ पहुंचाने का षणयंत्र है या इसके पीछे कोई बड़ा आर्थिक खेल है? क्यों सिडबी ने भारतीय माइक्रो क्रेडिट को रिजर्व बैंक कें बैंकिंग लेन-देन में रजिस्टर्ड नहीं होने के बावजूद सिडबी ने अपने साइट पर पार्टनर घोषित कर रखा है?
घालमेल सामने तब आता है, जब सिडबी और बीएमसी के लोगों से बात की जाती है तो उनकी तरफ से कुछ भी स्पष्ट नहीं बताया जाता है। मुद्रा की लखनऊ रीजन की आरओ गुंजन शुक्ला से जब इस संदर्भ में सवाल किया गया तो उन्होंने बताया कि भारतीय माइक्रो क्रेडिट भले ही पर्सनल लोन नहीं देती है, लेकिन ग्रुप को देती है। सवाल यह कि गया कि मुद्रा योजना के तहत व्यक्ति छोटे-मोटे लोन बिना परेशानी के ले सकता है, जबकि इस कंपनी के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है, फिर भी इसकी लिस्ट आपकी मुद्रा योजना की साइट पर दर्ज है तो उन्होंने कहा कि हां यह मुद्रा की पार्टनर कंपनी है। जब उनसे यह पूछा गया कि क्या यह कंपनी सारे नार्म पूरा करती है तो गुंजन शुक्ला ने कहा कि हां, सब नार्म्स पूरे करती है।
दरअसल, सवाल यही है कि जिस कंपनी ने रिजर्व बैंक तक में नियमानुसार लेन-देन के लिए रजिस्टर्ड नहीं है, जो नान बैंकिंग कंपनी का पहला मानक होता है, फिर किस आधार पर मुद्रा की पार्टनर बन जाती है? इतना ही नहीं, रिजर्व बैंक में अनरजिस्टर्ड कंपनी को सिडबी 128 करोड़ रुपए सेक्शन करती है, और किन-किन लोगों को लोन दिया गया इसकी सूचना मांगने पर नहीं दी जाती है। दरअसल, पूरा खेल यहीं से शुरू होता है। इस मामले में आरटीआई के जरिए जानकारी जुटाने वाले एक्टिविस्ट पीसी पाठक आरोप लगाते हैं कि इस पूरे आर्थिक गड़बड़ी के खेल में भाजपा के कुछ सफेदपोश नेता भी शामिल हैं। वह कहते हैं कि अगर ऐसा नहीं होता तो फिर आरटीआई से मांगी गई सूचनाएं देने में आनाकानी नहीं की जाती। एक नान बैंकिंग कंपनी को किस आधार पर लोन सेक्शन किया गया, जबकि वह रिजर्व बैंक में किसी भी तरह से रजिस्टर्ड नहीं है।
इन आरोपों के तहत तक जाने का प्रयास किया गया और भारतीय माइक्रो क्रेडिट से जानकारी चाही गई तो उनकी तरफ से कुछ भी स्पष्ट नहीं बताया गया। उनकी साइट पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, गृहमंत्री राजनाथ सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री कलराज मिश्र समेत कई फोटो कंपनी के निदेशक विजय पांडेय की दिखती है, लेकिन जब कंपनी के हेड आफिस को फोन मिलाइए तो वह चौबीस घंटे बिजी रहता है। आफिस टाइम के बाद भी फोन लगातार बिजी बताता रहता है। दूसरे नंबर पर काल करने पर जवाब आता है कि यह नंबर मौजूद नहीं है।
दरअसल,बीएमसी की पूरी प्रणाली ही संदिग्ध लेने-देन के दायरे में दिखती है। कंपनी का आय का स्रोत क्या है, इस पर भी पीसी पाठक सवाल उठाते हैं। श्री पाठक आरोप लगाते हैं कि बीएमसी रिजर्व बैंक में रजिस्टर्ड ना होने के बावजूद पब्लिक सेक्टर की बैंकों से बड़े आराम से पैसे लेती है। इसके बाद इस बैंक का पैसा उस बैंक में डालकर काम चला रही है, जबकि इस कंपनी के आय का कोई सीधा स्रोत नहीं है। ना तो बीएमसी लोन देती है और ना ही जमा स्वीकार करती है, तो क्या केवल फाइनेंस से आने वाली रकम से इतना खर्च निकाल रही है?
जब पीसी पाठक द्वारा आरटीआई से उपलब्ध कराई गई सूचना और उनके सवालों के पर बीएमसी को मेल कर जानकारी मांगी गई तो उनकी तरफ से कोई भी जवाब नहीं दिया गया। हेडआफिस फोन कर जानकारी मांगने का प्रयास किया गया तब भी कोई संपर्क नहीं हो पाया। दिए गए मोबाइल नंबरों पर बात करने का प्रयास किया गया तो किसी ने भी सही जवाब नहीं दिया। जब कंपनी की वेबसाइट पर दर्शाए गए टोलफ्री नंबर पर बात करने का प्रयास किया गया तो वहां से भी कोई जवाब नहीं मिला। पूछताछ करने का प्रयास चल ही रहा था कि इसी बीच टोलफ्री नंबर 18001200058 भी साइट से अचानक गायब हो गया।
बीएमसी ने अपनी कंपनी की वेबसाइट पर जो जानकारी 18 मई तक उपलब्ध करा रखी है, उसके अनुसार भारतीय माइक्रो क्रेडिट यानी बीएमसी देश के दस राज्यों को कवर करती है। इसके पूरे देश में 100 से ज्यादा ब्रांच हैं, जो देश भर के 50 जिलों को कवर करते हैं। बीएमसी से लोन लेने वालों की संख्या 1 लाख 63 हजार 374 है, लेकिन बीएमसी ने किन-किन राज्यों के किन जिलों में अपना ब्रांच खोल रखा है, कैसे इन जिलों में संपर्क किया जा सकता है, इसकी जानकारी कहीं भी उपलब्ध नहीं कराया है।
साइट के संपर्क कालम में लखनऊ स्थित हेड आफिस के साथ मिर्जापुर, वाराणसी, सीतापुर, फैजाबाद और इलाहाबाद का मोबाइल नंबर दिया गया है। उत्तराखंड की राजधानी देहरादून का भी मोबाइल नंबर दिया गया है, लेकिन जब इन लोगों से लोन के संदर्भ में बात की जाती है तो यह कल-परसों बात करने की बात कह कर टाल जाते हैं। 18 मई को जब देहरादून आफिस के नंबर पर काल करके ऋण लेने की बात की गई तथा आफिस का पता पूछा गया तो काल रिसीव करने वाले ने बताया कि आप सोमवार को बात करें। आफिस बीएसएनएल के बगल में है, लेकिन अभी पता नहीं दे सकता। आप सोमवार को बात करें।
सवाल यह उठता है कि जब बीएमसी ने इन जिलों में कार्यालय खोल रखा है तो फिर पता देने में क्या दिक्कत है? बीएमसी की कार्य प्रणाली को कटघरे में खड़ा करने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट पीसी पाठक आरोप लगाते हैं कि असली बात यही है कि इस कंपनी के कार्य प्रणाली में कहीं भी पारदर्शिता नहीं दिखती है। तमाम बैंक करोड़ों का ऋण दिए बैठे हैं, लेकिन कंपनी के आय का स्रोत क्या है किसी को पता नहीं है? बीएमसी ने अपनी वेबसाइट पर भले ही 50 जिलों और 100 शाखाएं होने की जानकारी डाल रखी हो, लेकिन आप इस कंपनी की वेबसाइट से यह जानकारी नहीं प्राप्त कर सकते कि ये किन-किन जिलों में है।
आरटीआई एक्टिविस्ट पीसी पाठक ने मुद्रा से जो जानकारी मांगी थी, उस परिप्रेक्ष्य में सिडबी ने उन्हें जो जानकारी दी वह आधी-अधूरी और छुपाने की मंशा से प्रेरित दिखती है। श्री पाठक ने मुद्रा से बीएमसी तथा एमएफएसएल को दी गई रकम की जानकारी तथा इससे जो लोग भी लाभांवित किए गए उनकी सूची और पता की मांग की थी, लेकिन सिडबी ने उन्हें पूरी जानकारी उपलब्ध नहीं कराई। ऋणधारकों का नंबर और पता देने में यह कहकर कन्नी काट लिया कि इनका पता और नंबर मुद्रा योजना आफिस में उपलब्ध नहीं है।
सिडबी ने आरटीआई में जो जानकारी दी है, उसके अनुसार सिडबी ने बीएमसी को 31 अगस्त 2017 तक 128.41 करोड़ रुपए सहायता के रूप में सेंक्शन किए थे, जिनमें से सारी रकम बीएमसी ने 74025 खातों के जरिए लोगों को प्रदान किया है। इसके बाद सिडबी ने मुद्रा योजना में 30 सितंबर 2017 को 4 करोड़ रुपए बीएमसी को और दिए। पीसी पाठक आरोप लगाते हैं कि सूचना ना दिए जाने की आड़ में सारा गोलमाल किया जा रहा है।बीएमसी ने दर्जनों बैंकों से करोड़ों रुपए का लोन उठा रखा है तथा उसे दूसरे कामों में लगाकर बिना किसी दिक्कत से अपने धनवान बनती जा रही है, जबकि आम लोगों को उसका लाभ नहीं मिल रहा है।
श्री पाठक का आरोप है कि बीएमसी यानी भारतीय माइक्रो क्रेडिट रिजर्व बैंक एक्ट 1934 के एनबीएफसी अंडर सेक्शन 45-1ए के तहत रजिस्टर्ड भी नहीं है, ना ही चैप्टर थ्री-बी एक्ट के तहत रजिस्टर्ड है। आरबीआई द्वारा दी गई सूचना में स्पष्ट बताया गया है कि भारतीय माइक्रो क्रेडिट उपरोक्त दोनों सेक्शनों के तहत उनके यहां रजिस्टर्ड नहीं है, केवल आरओबी कानपुर में रजिस्टर्ड होने के बाद कंपनी अपने पूरे फाइनेंशियल कामों को अंजाम दे रही है। इस संदर्भ में कंपनी का पक्ष जानने के लिए मेल किया गया, लेकिन उसकी तरफ से किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया गया। आरटीआई एक्टिविस्ट पीसी पाठक ने जनवरी में भारतीय माइक्रो क्रेडिट से कुल 15 बिंदुओं पर सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांगी, लेकिन कंपनी की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया गया। इसके बाद श्री पाठक ने कंपनी को नोटिस भी भेजा, लेकिन कंपनी ने कोई जवाब नहीं दिया।
पीसी पाठक ने बीएमसी को भेजे गए अपने पत्र में आरोप लगाया कि विजय पांडेय सिडबी से मिले पैसों को अपनी पत्नी तथा कुछ संबंधियों-दोस्तों के नाम से दूसरी कंपनियों में लगा रखा है। उन्होंने बीएमसी के डाइरेक्टर विजय पांडेय को भेजे गए सोशल आडिट के पत्र में आरोप लगाया है कि उनकी पत्नी माया पांडेय भारतीय माइक्रो क्रेडिट के अलावा भारतीय कोवशाला प्राइवेट लिमिटेड, जियोप्लेक्स टेक्नॉलजी साल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड, एमएफ इनफोसाल्यूशन्स प्राइवेट लिमिटेड तथा निमिशा फाइनेंस इंडिया प्राइवेट लिमिटेड शेयर होल्डर हैं।
अब पीसी पाठक के आरोपों में कितनी सच्चाई है यह जांच का विषय है, लेकिन कंपनी की तरफ से कोई जवाब नहीं दिया जाना उसे संदेह के घेरे में अवश्य खड़ा करता है। श्री पाठक यह भी आरोप लगाते हैं कि कंपनी फर्जी तरीके से कागजों पर ही समूहों को लोन देती है। उनका आरोप है कि वह शाहजहांपुर में अपने स्तर से जांच करने के बाद पाए कि कंपनी की तरफ से समूह के जिन लोगों के नाम लोन देने की बात की गई है, उनमें से कइयों को इसके बारे में जानकारी तक नहीं है।
नहीं मिला इन सवालों का जवाब
पीसी पाठक के लगाए गए आरोपों पर पक्ष रखने के लिए मेल करके कुछ जानकारियां मांगी गई थीं, लेकिन कंपनी की तरफ एक महीने बाद भी कोई जवाब नहीं दिया गया। कंपनी के किसी जिम्मेदार अधिकारी से भी फोन पर संपर्क नहीं हो पाया। कंपनी ने मेल किए गए किसी भी सवाल का जवाब नहीं दिया। लिहाजा कंपनी से पूछे गए सवालों की सूची नीचे है।
विषय – मुद्रा योजना और माइक्रो फाइनेंस से जुड़ी खबर पर आपकी कंपनी से कुछ आवश्यक जानकारी के संदर्भ में.
1- भारतीय माइक्रो क्रेडिट कंपनी मुद्रा की वेबसाइट पर एमएफआई के तौर पर नामांकित है. कृपया बताने का कष्ट करेंगे कि यह कंपनी अब तक इस योजना के अंतर्गत कितने व्यक्तियों को लाभाविंत कर चुकी है?
2- क्या कंपनी आरबीआई में एनबीएफसी अंडर सेक्शन 45 1ए , 1934 के तहत रजिस्टर्ड है?
3- यदि यह कंपनी आम उपभोक्ताओं से जमा प्राप्त नहीं करती है तो यह मुद्रा योजना के अंतर्गत या समूहों को ऋण कैसे उपलबध कराती है?
4- इस कंपनी के आमदनी के क्या साधन हैं, किस तरीके से कंपनी आमदनी प्राप्त करती है?
5- बीएमसी ने किस मद से प्रधानमंत्री के कार्यक्रम में ई-रिक्शा का वितरण किया था?
6- बीएमसी के कितने सेटेलाइट कार्यालय हैं और कहां कहां हैं?
बीएमसी को गुजरात से भी मिला है लोन
पीसी पाठक का आरोप है कि बीएमसी में कुछ भाजपा नेताओं का पैसा भी लगा हुआ है। उन नेताओं के सहयोग के चलते ही विजय पांडेय ई-रिक्शा वितरण कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बुलाने में सफल रहे। अब पीसी पाठक के आरोप कितने सही हैं, यह तो जांच का विषय है, लेकिन जिस तरीके से बीएमसी के कई कार्यक्रमों पीएम तथा कुछ बड़े भाजपा नेताओं की सहभागिता रही है, उसमें कुछ तो सच्चाई जरूर है। वर्ष 2014 से कंपनी के वेल्थ में अचानक बढ़ोतरी शुरू हो गई। यूपी के सरकारी तथा गैर-सरकारी कंपनियों के अलावा गुजरात की भी कई कंपनियों ने बीएमसी को बड़े-बड़े लोन दिए हैं।
बीएमसी पर वादाखिलाफी का आरोप
नोएडा में बीएमसी द्वारा पीएम के स्टार्ट अप इंडिया कार्यक्रम के तहत बांटे गए 1100 ई-रिक्शा को लेकर भी बवाल हो चुका है। आरोप लगा कि बीएमसी ने रजिस्ट्रेशन के समय जो वादा किया था, उसे पूरा नहीं किया। ई-रिक्शा चालकों ने आरोप लगाया था कि 1135 रुपये में रजिस्ट्रेशन कर कंपनी की ओर से ई-रिक्शा उपलब्ध कराया गया था।
बाजार में यह 50 से 55 हजार रुपये में उपलब्ध है, लेकिन इश्योरेंस मिलाकर खुद कंपनी ने इसकी कीमत 85 हजार रुपये तय कर दी। इसके बाद कंपनी की ओर से 1.71 लाख रुपये में ई-रिक्शा चालक को दो वर्ष के लिए फाइनेंस किया गया है। ई-रिक्शा बीएमसी की ओर से फाइनेंस किया गया। कई ई-रिक्शा की बैटरी चार माह में खराब हो गई। जब चालक शिकायत लेकर पहुंचे तो कंपनी ने बैटरी बदलकर नई बैटरी देने की बजाय पुरानी बैटरी को ही ठीक-ठाक कर वापस लगा दिया।
नोएडा के सेक्टर-8 में स्थित कंपनी के सर्विस सेंटर पर ई-रिक्शा तीन से आठ दिन तक तक खड़ा कराया जाता है। चालकों का आरोप है कि रिपेयरिंग में आने वाला खर्च भी बाजार से दुगुने दाम पर वसूला जाता है। ई-रिक्शा लेने वाले चालकों का आरोप है कि रजिस्ट्रेशन के वक्त किया गया वादा किया गया था कि बैटरी फुल चार्ज करके दिया जाएगा, खराब होने पर बैटरी बदल दी जाएगी तथा दो साल तक रिपेयरिंग पर आने वाला खर्च कंपनी वहन करेगी, लेकिन बीएमसी ने वादाखिलाफी करते हुए किसी भी वादे को पूरा नहीं किया।
इतना ही नहीं कंपनी ने चालकों को यह भी आश्वासन दिया था कि अटल पेंशन योजना में चालक को शामिल किया जाएगा साथ ही दो लाख रुपये का दुर्घटना बीमा भी चालक का कराया जाएगा, लेकिन ऐसा कुछ भी कंपनी की तरफ से नहीं किया जा रहा है।