राज बहादुर सिंह
चुनौतियों का पहाड़, उम्मीदें बरकरार : संयुक्त विपक्ष (सपा, बसपा, रालोद, कांग्रेस, आप व अन्य) को मिला कर कैराना में मिले चार लाख 81 हजार वोट जबकि भाजपा को मिले चार लाख 36 हजार वोट। यह भाजपा की हार ज्यादा है या अपना वजूद बचाने की जद्दोजहद से जूझ रहे दलों को वक़्ती राहत। यह अपने अपने नजरिए की बात है। दलों के दलदल के मुकाबले अकेले भाजपा को मिले वोट कोई कम नहीं हैं और चुनाव अगर देश का मुस्तकबिल तय करने के लिए हो रहे होते तो भाजपा इस अंतर को शायद पार कर आगे निकल जाती।
खैर ऐसा हुआ नहीं और अब हर कोई मीन मेख निकाल रहा है। कोई व्यक्ति में तो कोई रणनीति में। नूरपुर सीट पर मेहनत की कमी साफ नजर आयी और शायद टिकट के कुछ दावेदारों की उदासीनता की आड़ में पार्टी विरोधी रुख इसका कारण रहा हो। एकजुट विपक्ष के सामने पांच से छह हजार का फर्क भी सामान्य चुनाव में पाटा जा सकता है। सरकार बनाने के लिए सामान्य चुनाव होने पर संयुक्त विपक्ष के सामने भाजपा की ताकत जरूर बढ़ेगी। इसकी बानगी भी दिखती है कैराना और नूरपुर के नतीजों में। खासकर यह गौर करते हुए कि कैराना के मतदाताओं की जातीय और धार्मिक आधार पर आबादी का समीकरण भाजपा के लिए कभी कुछ खास खुशगवार नहीं रहा।
गैर भाजपा विरोधी खेमा खुश है। होना भी चाहिए। रालोद का खाता खुल गया। पार्टी के मालिक बाप बेटे भले खाली घूम रहे हों लेकिन सपा से उधार का सिंदूर लेकर फिलहाल रालोद ने अपनी मांग कुछ महीनों के लिए तो सजा ही ली। सपा की निर्भरता बसपा पर और बढ़ गयी और बसपा का भाव भी। सम्मानजनक सीटें मिलने पर समझौता करने की मायावती की चेतावनी का मतलब उसके वोट को ललचाई नजरों से देख रहे उधार के सिंदूर के तमन्नाई खूब समझ रहे हैं और देखना है कि मायावती को कितना और कैसे सम्मान मिलता है।
सबसे हास्यास्पद स्थिति तो कांग्रेस की है जो दूसरों के घर बच्चा पैदा होने पर केवल ताली बजाने वाली टोली बनकर रह गयी है। फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में दुर्दशा होने के बाद वह कैराना और नूरपुर में चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं जुटा सकी। सच तो यह है कि सपा, बसपा या रालोद ने उसे पूछा तक नहीं और अब वह खुद ढोल मजीरा लेकर बधाई देने दरवाजे दरवाजे जा रही है। ऐसी बधाई कौन देता है, आप समझ ही गए होंगे।
ऐसा नहीं है कि उपचुनाव में भाजपा के लिए सबक नहीं हैं। जरूर हैं। बदजुबानी कर रहे योगी सरकार के मंत्री बाहर किए जाने चाहिए। उनकी जाति आधारित पार्टी को किक आउट कर उसी जाति के युवा और कर्मठ नेताओं को प्रमोट करना भाजपा के लिए श्रेयस्कर होगा। योगी सरकार में फेरबदल कर निठल्ले मंत्रियों को बाहर कर सरकार की हनक स्थापित करना होगा। योगी को विफल करने की साजिश रचने में लगे लोगों को बेनक़ाब कर दंडित करना पड़ेगा। सीएम सहित सभी को बड़बोलेपन से यथासंभव बचना भी चाहिए। प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर बॉडी लैंग्वेज के लिहाज से कोई गतिशील और तत्परता से युक्त व्यक्ति कदाचित ज्यादा उपयुक्त होगा।
पराजय से निराश होना स्वाभाविक है लेकिन नतीजे ऐसे नहीं है कि मातम में डूब जाएं। अगले लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी को एक और मौका देने की सोच रखने वालों की कमी नहीं है और जो किसी वजह से खिन्न हैं वे भी ऐसा मौका आने पर मोदी को एक और मौका देने की कतार में शामिल हो जाएंगे। बस जरूरत इस बात की है कि संगठनात्मक ढांचे और पार्टी वर्कर्स की मेहनत के दम पर इस मौके को जाया न होने दिया जाए।