: फर्रुखाबाद बेसिक शिक्षा विभाग का कारनामा : फर्रुखाबाद : उत्तर प्रदेश में बेसिक शिक्षा विभाग लंबे अरसे से भ्रष्टाचार के दूसरे नाम के रूप में पहचाना जाता रहा है। इस विभाग में शिक्षा को छोड़कर वह सारे काम किए जाते हैं, जिससे इसकी गरिमा प्रभावित होती है। बेसिक शिक्षा आज किस दशा-दिशा में पहुंच चुका है, इसका उदाहरण फर्रुखाबाद जनपद के बेसिक शिक्षा विभाग में मृतक आश्रित कोटा में की गई गड़बडि़यों से उजागर होती हैं। गलत तरीके से की गईं नियुक्तियों को कभी खुलासा नहीं होता अगर एक आरटीआई एक्टिविस्ट ने सूचना अधिकार के तहत जानकारी मांग-मांग कर इसका खुलासा नहीं किया होता।
इसके बावजूद शर्मनाक बात यह है कि नियुक्तियों में फर्जीवाड़े का खुलासा होने तथा उसकी शिकायत ऊपर तक किए जाने के बाद किसी भी मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई। खासकर योगी आदित्यनाथ की सरकार में ऐसे फर्जीवाड़ों पर कार्रवाई ना होना और भी चिंतित करता है। सच यही है कि अगर आपके पास पैसा है, थोड़ी जान-पहचान है तो आप इस देश में कुछ भी गलत कर सकते हैं कोई आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता है, लेकिन आपके पास पैसा नहीं है, जान-पहचान नहीं है तो आप सही होते हुए भी सिस्टम की चक्की में पिसते रहेंगे, आपको कहीं न्याय नहीं मिल सकता।
आपको यूपी में ही तमाम ऐसी कहानियां मिल जाएंगी कि पीडि़त न्याय मांगते-मांगते चल बसा लेकिन सत्ता, सिस्टम, कोर्ट-कचहरी कहीं से उसे न्याय नहीं मिला। दरअसल, बसपा और सपा के शासनकाल में जनता भ्रष्टाचार, फर्जीवाड़ा या किसी भी गलत काम के खिलाफ कार्रवाई की अपेक्षा ही भूल चुकी थी। जनता ने तय मान लिया था कि इनके शासनकाल में न्याय मिलना मुश्किल है, लेकिन शुरुआती उम्मीद जगाने के बाद भाजपा सरकार भी उसी राह पर चल निकली है। और सोने पर सुहागा यह कि यह विभाग ऐसी मंत्री के पास है, जिन पर लगातार भ्रष्टाचार के आरोप चस्पा होते चले आ रहे हैं।
आरटीआई एक्टिविस्ट शिव नारायण श्रीवास्तव ने सूचना अधिकार के तहत जुटाए गए सबूतों के आधार पर आरोप लगाया कि शिक्षा विभाग में कार्यरत चंदन गोपाल सोनकर तथा अजय टंडन गलत तरीके से कोर्ट को गुमराह करके नौकरी कर रहे हैं, उनकी शिकायत किए जाने के बावजूद कोई कार्रवाई अबत क नहीं हुई। आरोप के अनुसार फर्रुखाबाद में मृतक आश्रित कोटे में फर्जी तरीके से एक मृतक के स्थान पर दो से तीन आश्रितों की नियुक्ति कर दी गई। इसमें तत्कालीन वित्त एवं लेखाधिकारी की भूमिका भी संदिग्ध रही है।
वर्ष 1989 में अजय टंडन, बदन सिंह, राकेश चंद्र सक्सेना तथा चंदन गोपाल सोनकर की अस्थाई नियुक्ति हुई। अजय टंडन अस्थाई कनिष्ठ लेखालिपिक, चंदन गोपाल सोनकर अस्थाई टंकक लिपिक, बदन सिंह एवं राकेश चंद्र सक्सेना अस्थाई चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के पद पर नियुक्त किए गए थे। इनकी अस्थाई नियुक्ति में किसी भी मानक का पालन नहीं किया गया। इन अस्थाई नियुक्तियों के लिए ना तो चयन प्रक्रिया का गठन किया गया ना ही विज्ञापन प्रकाशित कराया गया। साथ आरक्षण नियमों का भी पालन नहीं किया गया।
वर्ष 1990 में नए वित्त एवं लेखाधिकारी बेसिक शिक्षा फर्रुखाबाद हाकिम सिंह यादव ने 7 जुलाई 1990 को उक्त चारों कर्मचारियों की सेवाएं समाप्त कर दीं। सेवा समाप्ति के आदेश के विरुद्ध लिपिक संवर्ग के अस्थाई कर्मचारी अजय टंडन एव चंदन गोपाल सोनकर हाईकोर्ट में इसके खिलाफ अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कीं। दूसरी तरफ चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी बदन सिंह एवं राकेश चंद्र सक्सेना ने संयुक्त रूप से इलाहाबाद हाई कोर्ट में इसके खिलाफ याचिका संख्या सीएमडब्ल्यूपी नंबर 17655/1990 योजित की, जिसमें 2 अप्रैल 2004 तथा 24 सितंबर 2004 को पारित आदेश में उनकी याचिका को निरस्त कर दिया।
इसके बाद इन दोनों ने हाईकोर्ट में स्पेशल अपील नंबर 989/2004 दाखिल की, जिसमें एकल पीठ द्वारा पारित आदेश को बहाल रखते हुए 19 नवंबर 2004 को निरस्त कर दी गई। उक्त दोनों कर्मचारी स्पेशल अपील में पारित आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गए। सुप्रीम कोर्ट के समक्ष स्पेशल लीव टू अपील सिविल एसएलपी नंबर 43/2005 दाखिल की गई। सुप्रीम कोर्ट ने 18 अगस्त 2006 को पारित अपने आदेश में हाईकोर्ट के स्पेशल अपील आदेश 19 नवंबर 2004 को बहाल रखते हुए एसएलपी को निरस्त कर दिया। इसके बाद वित्त नियंत्रक बेसिक शिक्षा परिषद ने अपने पत्र संख्या 25 अप्रैल 2005 के जरिए वित्त एवं लेखाधिकारी फर्रुखाबाद को शासन से अनुमति प्राप्त कर काउंटर एफिडेविट दाखिल करने का निर्देश दिया।
इसके विपरीत चंदन गोपाल सोनकर मामले में बेसिक शिक्षा विभाग ने आंख मूंद लिया। उपरोक्त समान प्रकरण के तहत नियुक्त किए गए चंदन गोपाल सोनकर की बर्खास्तगी आदेश संख्या 7/13 जुलाई 1990 के विरुद्ध इलाहाबाद कोर्ट में सीएमडब्ल्यूपी नंबर 19147/1990 दाखिल की गई, जिसमें पारित बर्खास्तगी के आदेश दिनांक 12 जुलाई 2001 के विरुद्ध 345 दिनों के विलंब के बाद इलाहाबाद हाईकोठर्ट में स्पेशल अपील डिफेक्टिव नंबर 363/2002 दाखिल की गई, जिसे कोर्ट ने अपने 2 जनवरी 2007 के आदेश में डिसमिस कर दिया।
इसके बावजूद वित्त एवं लेखाधिकारी जनपद फर्रुखाबाद ने चंदन गोपाल सोनकर को हाईकोर्ट के आदेश के विपरीत 12 जुलाई 2001 से अवैध रूप से सेवायोजित रखा गया। इधर, हाईकोर्ट के बर्खास्तगी के आदेश के बीच चंदन गोपाल सोनकर 16 जुलाई 2001 को 2000 रुपए का घूस लेते रंगे हाथ पकड़े गए। यह कार्रवाई सतर्कता अधिष्ठान कानपुर ने की। इसके बाद चंदन गोपाल सोनकर को निलंबित कर दिया गया, जबकि नियमानुसार वह बर्खास्त थे तथा सेवा में नहीं थे, इसके बावजूद श्री सोनकर को निलंबित करने का कुचक्र रचा गया।
कोर्ट के आदेश के विपरीत चंदन गोपाल सोनकर बेसिक शिक्षा विभाग में सेवारत हैं। विवादों से बचाने के लिए 27 जुलाई 2012 को श्री सोनकर को फर्रुखाबाद से जौनपुर स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वह फिलहाल सेवारत हैं। ठीक इसी तरह अस्थाई कनिष्ठ लेखालिपिक के तौर पर नियुक्त अजय टंडन ने भी अपने बर्खास्तगी आदेश दिनांक 7 जुलाई 1990 के विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में सीएमडब्ल्यूपी नंबर 21128/1990 दाखिल की।
अजय ने बदन सिंह, राकेश चंद्र सक्सेना तथा चंदन गोपाल सोनकर मामले सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट द्वारा दिए गए आदेशों को छुपाकर तथा गुमराह कर 28 सितंबर 2007 को अपने पक्ष में पारित करा लिया, जबकि इसी तरह के अन्य मामले सुप्रीम कोर्ट तथा हाईकोर्ट ने डिसमिस कर दिए थे। अजय टंडन लंबे समय से विभागीय न्यायिक पटल का कार्य स्वयं निष्पादित कर रहे हैं, लिहाजा श्री टंडन ने अपने समान अन्य सहकर्मियों के प्रकरण में सुप्रीम कोर्ट के आदेश दिनांक 18 अगस्त 2006 को छुपा लिया, जो टंडन के पक्ष में आए आदेश से 13 महीने पहले ही पारित हो चुका था।
उल्लेखनीय है कि सुप्रीम कोर्ट में दाखिल सिविल अपील संख्या 3125/2008 में न्यायमूर्ति एसवी सिन्हा एवं न्यायमूर्ति वीएस सरपुरकर की खंडपीठ द्वारा 30 अप्रैल 2008 को पारित आदेश में यह व्यवस्था दी गई कि समान मामलों में एक ही रूख रखना होगा। न्यायालय ने इसे समानता के कानून और अनुच्छेद 16 का उल्लंघन करार दिया है।
इन खुलासों के बाद गलत तथ्यों के आधार पर नौकरी कर रहे अजय टंडन एवं चंदन गोपाल सोनकर के खिलाफ जांच के लिए आरटीआई एक्टिविस्ट शिवनारायण श्रीवास्तव ने मुख्यमंत्री से लगायत सतर्कता विभाग एवं अन्य संबंधित विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के पास शिकायत भेजी, लेकिन किसी ने भी इन शिकायतों का संज्ञान नहीं लिया। इसका परिणाम यह है कि उपरोक्त कर्मचारी गलत नियुक्ति के बावजूद शासन की सुविधाओं का पूरा लाभ ले रहे हैं। इनके खिलाफ कार्रवाई ना होने से आरटीआई एक्टिविस्ट शिव नारायण भी हताश होते जा रहे हैं। उनका भरोसा न्यायिक प्रणाली और सरकार से उठता जा रहा है।