डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्विद्यालय एक बार फिर नियुक्ति में फर्जीवाड़े के विवाद के कारण चर्चा में है। इस विवि के उपकुलसचिव पर आरोप है कि उन्होंने फर्जी और गलत प्रमाण पत्रों के जरिये नियुक्ति प्राप्त कर ली। साथ ही उन पर एक व्यक्ति को गोली मारने का भी आरोप है। दरअसल, इन सारे आरोपों के जरिये एक व्यक्ति ने राज्यपाल समेत यूपीटीयू को लिखित शिकायत की थी, लेकिन सालों बीत जाने के बावजूद अब तक जांच का कोई निष्कर्ष नहीं निकल पाया है। अब देखना है कि भाजपा सरकार में भी इन आरोपों की जांच होती है या फिर सपा शासनकाल की तरह मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है?
फर्जीवाड़ा से नियुक्ति!
लखनऊ : डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्विद्यालय एक बार फिर चर्चा में है। इस बार उप कुलसचिव के पद पर नियुक्ति में फर्जी प्रमाण पत्र के आधार पर नौकरी देने का आरोप लगा है। इसके पहले पूर्व कुलपति निशीथ राय पर भी भ्रष्टाचार और अपने लोगों को लाभ देने का आरोप लग चुका है। उन्हें हटाया भी जा चुका है, लेकिन उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं हुई। आशंका जताई गई कि भाजपा सरकार के कुछ बड़े लोग निशीथ राय की ढाल बन गये।
खैर, अभी ये मामला पूरी तरह ठंडा भी नहीं पड़ा था कि उप कुलसचिव के पद पर नियुक्त हुए डा. अरविंद कुमार सिंह उर्फ एके सिंह पर फर्जी अनुभव प्रमाण पत्र तथा एक हत्या करने के आरोपों से भरा पत्र राज्यपाल एवं कुलपति को भेजा गया है। अब इसमें कितनी सच्चाई है, यह जांच का विषय है, लेकिन इस शिकायती पत्र के बाद इस विश्वविद्यालय में चल रही गड़बड़ी की कड़ी में एक और मामला जुड़ गया है। आजमगढ़ निवासी कृष्ण कांत ने यह शिकायती पत्र राज्यपाल समेत कई लोगों को भेजे हैं। उप कुलसचिव नियुक्ति में जिस तरह विज्ञापन की शर्तों को बदलकर उम्र को शिथिल किया गया, उसे देखकर प्रथम दृष्टया यही प्रतीत हो रहा है कि उस भर्ती प्रक्रिया में कुछ ना कुछ तो गड़बड़ है।
दरअसल, कृष्ण कुमार ने आरोप लगाया है कि डा. एके सिंह नियुक्ति के समय ही फर्जी अभिलेखों के सहारे ही यह पद प्राप्त किया है। इसकी जानकारी कुलसचिव को भी है, लेकिन वह इसे दबाने वालों की लिस्ट में शामिल हैं। आरोप के अनुसार नियुक्ति के समय ही डा. एके सिंह को लाभ पहुंचाने के लिये पहले विज्ञापन में बदलाव किया गया। विश्वविद्यालय की तरफ से 28 मई 2010 को निकाले गये पहले विज्ञापन में उम्र का पेंच फंस रहा था, लिहाजा दुबारा 17 नवंबर 2010 को विज्ञापन निकालकर उम्र सीमा को 50 वर्ष तक बढ़ाया गया ताकि डा. सिंह को लाभ दिया जा सके। इसके लिये शासन की अनुमति भी नहीं ली गई, जबकि आयु शिथिलीकरण काक अधिकारी विश्वविद्यालय को नहीं था।
पहले विज्ञापन में आवेदन रजिस्टर्ड डाक या स्पीड पोस्ट से भेजने की बाध्यता थी, तब भी डा. सिंह ने हाथों हाथ अपना आवेदन जमा किया। दुबारा विज्ञापन निकाले जाने के बाद इसमें बदलाव करते हुए हाथ से जमा करने की बात जोड़ दी गई। शिकायतकर्ता का आरोप है कि श्री सिंह ने अपने एक अनुभव प्रमाण पत्र में 1 जुलाई 1994 से 31 दिसंबर 1995 तक यानी कुल एक वर्ष 6 महीने इंडियन इंस्टीट्यूट आफ रुरल टेक्नोलाजी अंबेडकर नगर में परिजयोना अधिकारी के पद पर काम का अनुभव दिखाया है, जहां उन्हें 8500 रुपये प्रतिमाह मिलते थे।
इसमें सबसे दिलचस्प तथ्य यह है कि इस इंस्टीट्यूट का पता वही है, जो डा. सिंह के गांव यानी स्थायी निवास का है। इसके बाद जनवरी 1996 से आवेदन करने यानी बीते 15 सालों से इसी संस्थान में परियोजना निदेशक के पद पर कार्यरत दिखाया है, जिसमें इन्हें 8000-222-13500 वेतनमान मिल रहा था, लेकिन इसके साथ कोई अनुभव प्रमाण पत्र नहीं है। ना ही वेतनमान को कोई प्रमाण पत्र संलग्न है। ना ही इनकम टैक्स जमा किये जाने का कोई प्रमाण है। डा. सिंह ने अपनी आय का प्रमाण पत्र खुद बनाकर दिया है। आरोप है कि अंबेडकरनगर के जिस इंस्टीट्यूट के नाम पर इन्होंने काम करना दिखाया है, वह किसी प्राइवेट एनजीओ या ट्रस्ट का नाम है।
दरअसल, आरोप को बल इसलिये भी मिल रहा है क्योंकि इन्होंने अपने इनकम की जो जानकारी दी है वह खुद से बनाये गये टेबल के जरिये दी है। तब सवाल यह उठता है कि इनकम टैक्स का सर्टिफिकेट नहीं होने के बावजूद कैसे चयन समिति ने इनके नाम पर मोहर लगा दिया? जबकि स्क्रीनिंग कमेटी ने भी रिमार्क दिया था कि वेतनमान के लिये कोई संलग्नक नहीं लगा है। इसमें ना तो फार्म 16 और ना ही आईटीआर लगा है।
शिकायतकर्ता ने आरोप लगाया है कि डा. सिंह पर एक व्यक्ति को गोली मारने का आरोप है, जिसमें उनके खिलाफ मामला भी दर्ज है। शिकायत के अनुसार श्री सिंह ने इसी के चलते अपना पुलिस वेरिफिकेशन और चरित्र प्रमाण पत्र इलाहाबाद से बनवाया है, जबकि उन्हें अपना प्रमाण पत्र अपने मूल निवास जिला अंबेडकरनगर से बनवाना चाहिए था। अपने अभियोग की जानकारी छुपाने के लिये इलाहाबाद से प्रमाण पत्र जारी करवाया गया है, जो प्रथम दृष्टया फर्जी प्रतीत होता है।
इस संदर्भ में कुलसचिव उत्तर प्रदेश प्राविधिक विश्वविद्यालय लखनऊ ने डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विवि के कुलसचिव को पत्र भेजकर उपरोक्त सभी आरोपों की जांच कराकर पूरी कार्रवाई से अवगत कराने को कहा था, लेकिन अब सालों बीतने के बाजूवद अब तक इस संदर्भ में कोई कार्रवाई जानकारी में नहीं आई है।
विवि के पूर्व कुपलति पर भी लग चुके हैं आरोप
डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति निशीथ राय पर कई तरह के भ्रष्टाचार के आरोप लग चुके हैं। श्री राय पर विश्वविद्यालय में शिक्षकों और कर्मचारियों की सीधी भर्ती में भ्रष्टाचार करने के आरोप थे। इन नियुक्तियों में काफी अनियमितता एवं गड़बड़ी की गई थी, जिसके बाद इन नियुक्तियों पर रोक लगा दी गई थी। निशीथ राय का गलत तरीके से अपने चहेतों और रिश्तेदारों को नौकरी बांटने का भी आरोप था, जिस पर जांच कराने के बाद सरकार ने उन्हें पद से हटा दिया था, लेकिन सरकार की तरफ से आजतक कोई कानूनी कार्रवाई नहीं की गई। रीजनल सेंटर फॉर अरबन एंड इन्वायरमेंट स्टडीज यानी आरसीयूएस के निदेशक रहने के दौरान निशीथ राय पर अपने सगे साले डीके राय को यहां नियुक्त करने का आरोप भी है।
गौरतलब है कि जब भाजपा सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप लगने पर निशीथ राय को कुलपति के पद से हटाया था, तब वह हाईकोर्ट के आदेश पर दुबारा वीसी का चार्ज पा लिये थे। दुबारा चार्ज मिलते ही निशीथ राय ने अपने खासमखास देवेंद्र पाल के भाई जोगेंद्र पाल का स्थानांतरण अवैध तरीके से शकुंतला विश्विद्यालय से रीजनल सेंटर फॉर अरबन एंड इन्वायरमेंट स्टडीज में जेनिटर के पद पर कर दिया, जबकि प्रदेश सरकार के संस्थान से केंद्र सरकार के संस्थान में तबादला असंवैधानिक एवं नियम विरुद्ध है। इसके बावजूद आदतन भ्रष्ट निशीथ राय ने नियमों की अनदेखी करते हुए जोगेंद्र पाल को शकुंतला विश्वविद्यालय से आरसीयूएस में सेट कर दिया।
निशीथ राय ने जब 29 जनवरी 2014 को डा. शकुंतला मिश्रा राष्ट्रीय पुनर्वास विश्वविद्यालय के कुलपति बनाए गए तब उनके पास रीजनल सेंटर फॉर अरबन एंड इन्वायरमेंट स्टडीज के निदेशक का भी प्रभार था। आरोप है कि निशीथ राय बिना रीजनल सेंटर फॉर अरबन एंड इन्वायरमेंट स्टडीज के निदेशक से इस्तीफा दिए शकुंतला मिश्रा विश्वविद्यालय के कुलपति का पदभार भी ग्रहण कर लिया। निशीथ राय पर क्षेत्रीय नगर एवं पर्यावरण अध्ययन केंद्र के निदेशक के रूप में एक करोड़ से ज्यादा के भुगतान में अनियममितता के आरोप भी हैं। साथ ही उन पर गलत जन्मतिथि बताने का भी आरोप है।
निशीथ राय ने लखनऊ विश्वविद्यालय में हाई स्कूल की जो मार्कशीट लगाई है, उसमें उनकी जन्मतिथि 1 अक्टूबर 1963 दर्ज है,जबकि अंकपत्र के सत्यापन में सचिव माध्यमिक शिक्षा परिषद ने बताया है कि निशीथ राय ने 1977 में हाई स्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की, जिसमें उनकी जन्मतिथि 1 अक्टूबर 1960 दर्ज है। इसके बावजूद राज्य सरकार की तरफ से निशीथ राय के खिलाफ कोई कानूनी कार्रवाई नहीं किये जाने से उसकी मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। आखिर जब सरकार द्वारा कराई कई जांच में निशीथ राय को दोषी पाकर हटाया गया तो फिर उनके खिलाफ कानून के तहत भ्रष्टाचार एवं अन्य गड़बडि़यों में कार्रवाई क्यों नहीं कराई जा रही है? सवाल यह भी है कि योगी सरकार में भी वे कौन लोग हैं, जो निशीथ के खिलाफ कार्रवाई नहीं होने दे रहे हैं?