अनिल सिंह
यूपी में भारतीय जनता पार्टी का दोहरा चरित्र पहचानने के लिए किसी उदाहरण की जरूरत नहीं है। जब मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब समाजवादी पार्टी में थे, तब तक वह भाजपा के लिए सबसे बड़े भू-माफिया थे, लेकिन भाजपा में शामिल होते ही, उनके सारे दाग धुल गए। उनके खिलाफ धोखाधड़ी समेत कई धाराओं में दर्ज कराई गई एफआईआर में अब क्राइम ब्रांच जांच करना नहीं चाह रहा है। क्राइम ब्रांच इसे बड़ी धनराशि का धोखाधड़ी बताते हुए इसकी जांच यूपी की पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा ईओडब्ल्यू से कराने की सिफारिश की है। अभी शासन-प्रशासन स्तर से इस पर कोई निर्णय नहीं लिया गया है, लेकिन समझा जा सकता है कि इस मुकदमे का हश्र क्या होने वाला है? वैसे भी, बुक्कल के भीतर अचानक जगा हनुमान जी के प्रति प्रेम ने पुराने मुस्लिम भाजपा नेताओं को डरा कर रख दिया है कि वह कैसे इतनी जल्दी रंग बदलने की कला सीखें। भाजपा में वैसे भी रंगबदलुओं की पूछ आजकर ज्यादा हो गई है।
सपा का भू-माफिया बन गया भाजपा का नवाब
लखनऊ : मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब उस समय तक उत्तर प्रदेश के बड़े भू-माफिया बताए जा रहे थे, जब तक वह एमएलसी पद से इस्तीफा देकर भाजपा में शामिल नहीं हो गए। भाजपा में शामिल होते मजहर अली खां उर्फ बुक्कल के सारे पाप धुल गए और बुक्कल भाजपा में नवाब बन गए। अब उनके खिलाफ चल रही जांचें इस दर से उस दर भेजने का खेल शुरू हो गया है। अब मामला अंजाम तक कैसे पहुंचेगा समझना कोई मुश्किल नहीं है। सपा से आए बुक्कल भाजपा में ऐसे घुलमिल गए हैं कि इनके सामने असली भाजपाई ही नकली समझ आने लगे हैं।
समाजवादी पार्टी में रहने के दौरान भगवा पार्टी और उसके हिंदुत्व के एजेंडे को टीवी चैनलों पर लगातार कोसने वाले बुक्कल नवाब राजनीति-आर्थिक-सामाजिक ”पाप धोओ वाशिंग मशीन” बनी भाजपा में जाते ही ऐसे साफ-सुथरे और चमकदार होकर निकले कि उनके पाप तो खत्म हुए ही मुस्लिम राग छोड़कर हिंदुत्व के सबसे बड़े लंबरदार भी बन गए। हनुमान मंदिर में घंटा बांध आए और खुद को पुराने भाजपाइयों से भी बड़ा राम-हनुमान भक्त घोषित कर दिया। अब पुराने भाजपाइयों को अपने पर शक हो रहा है कि क्या वह लोग राम भक्त हैं भी या नहीं?
दरअसल, बुक्कल नवाब पर सवाल उठने का सबसे बड़ा कारण यह है कि नैतिक राजनीति करने का दावा करने वाली भाजपा ने जब बुक्कल नवाब जैसे भू-माफिया को एमएलसी बनाया, उसके बाद से ही उनके खिलाफ चल रही कई मामलों की जांच भी दरबदर होने लगी है। अब स्थिति यह है कि भाजपा से एमएलसी बने बुक्कल नवाब के खिलाफ धोखाधड़ी करके जमीन हथियाने तथा गलत तरीके से सरकारी मुआवजा हड़पने के मामले में चल रही जांच को अंजाम तक पहुंचाने में क्राइम ब्रांच ने हाथ खड़े कर दिए हैं। इस जांच को ईओडब्ल्यू से कराए जाने के लिए शासन को पत्र लिखा है।
सवाल यही है कि भाजपा में शामिल होते ही बुक्कल नवाब की जांच करने से क्राइम ब्रांच क्यों भागने लगी है?मुकदमा दर्ज होने के एक साल बाद भी तय नहीं हो पाया है कि इस जांच को अंजाम तक क्राइम ब्रांच पहुंचाएगा। मामला सत्ताधारी दल से जुड़े एमएलसी का होने के चलते क्राइम ब्रांच अब अपने हाथ पीछे खींच रही है। क्राइम ब्रांच के अधिकारी ज्यादा बड़ा पैसे का धोखाधड़ी बताकर अब जांच ईओडब्ल्यू से कराने के पक्ष में पत्रबाजी करने लगे हैं। अब सवाल यह है कि जब साल भर बाद भी जांच एक दूसरे से कराए जाने की पत्रबाजी हो रही है तो चार्जशीट कब दाखिल होगा, समझने में मुश्किल नहीं होनी चाहिए।
उल्लेखनीय है कि सपा में एमएलसी रहे रहने के दौरान मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब अपने संपर्कों और संबंधों की बदौलत गोमती नदी के किनाने जिया मऊ, भिकमामऊ और जुगौली की लगभग 54 बीघा जमीन राजस्व अभिलेखों में अपने नाम वरासतन दर्ज करा ली थी। इसमें सरकारी अधिकारियों की भी मिलीभगत थी। इस जमीन का अधिग्रहण होने पर राजस्व अधिकारियों ने बिना जांच-पड़ताल के किए बुक्कल नवाब को लगभग 8 करोड़ रुपए का मुआवजा दे दिया। जबकि इस जमीन को लेकर फकर जहां बेगम और बुक्कल नवाब के बीच चल रहा था। इसमें 22 अगस्त 1977 नायब तहसीलदार के आदेश के बाद लगभग 54 बीघे जमीन की वरासत मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब के नाम से दर्ज हो गई थी। बुक्कल को इस जमीन का मुआवजा मिलने के बाद बक्शी के तालाब तहसील के गोयला गांव निवासी हरिश्चंद्र वर्मा ने हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच में मुकदमा दायर कर दिया।
इस मामले में 11 अक्टूबर 2004 को नायब तसहीलदार राम मिलन सिंह ने तत्कालीन उपजिला मजिस्ट्रेट को जो रिपोर्ट पेश की, जिसमें उन्होंने वसूली कराए जाने के साथ विधिक कार्रवाई करने की आख्या दी थी। राम मिलन सिंह के इस रिपोर्ट के अनुसार नवाब फाकिर जहां बेगम पत्नी मोहम्मद वाकर अली खां की एक बेटी आबिद जहां बेगम तथा एक पुत्र मिर्जा मोहम्मद तकी अली खां थे। नवाब मिर्जा मोहम्मद तकी अली खा की तीन बेटियां क्रमश: अशरफ जहां बेगम, फर्रोज जहां बेगम तथा मलका फ्लाक जहां बेगम तथा दो पुत्र मिर्जा अली वाकर खा तथा मिर्जा अली जाफर खां थे।
उक्त तीनों पुत्रियों में से एक पुत्री अशरफ जहां बेगम 1962 से पूर्व पाकिस्तानी नागरिक हो गई थीं, इनके हिस्से की संपत्ति को हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच के बाद निष्क्रांत घोषित किया गया। आबिद जहां बेगम के पुत्र मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब ने उजरियाव ग्राम स्थिति उक्त संपत्ति जिसे कोर्ट के आदेश के बाद राज्य सरकार की संपत्ति हो गई थी, अधिकारियों से मिलीभगत कर, उसके प्रतिकर के रूप में 92 लाख रुपए का भुगतान सरकार से करा लिया।
राम मिलन सिंह ने अपने रिपोर्ट में लिखा है कि वर्ष 1305 दिनांक 15-12-79 से यह स्पष्ट है कि मुकदमा नंबर 114/754 फैसला दिनांक 22-8-77 से खाता खेवट नंबर एक श्रीमती फकर जहां बेगम मृतक का नाम खारिज कर मजहर अली खां उर्फ बुक्कल नवाब पुत्र आबिद अली जहां खां का नाम वरासत में दर्ज होने का आदेश तत्कालीन नायब तहसीलदार द्वारा पारित किया गया है, जो पताका ब पर संलग्न है। उच्च न्यायालय के अपील नंबर 77/1946 से आपसी समझौते में यह स्पष्ट है कि वर्णित सम्पत्ति के वारिस अन्य लोग एवं उच्च न्यायलय के संलग्न आदेश पतांक सख्या दिनांक 8-9-1964 से शिकायतकर्ता पिता (मृतक) भी वारिस माने गए हैं।
परंतु तत्कालीन नायब तहसीलदार के आदेश दिनांक 15-12-79 से मात्र मजहर अली द्वारा वर्णित सम्पत्ति का वारिस घोषित कराकर अपने पक्ष में लाभ प्राप्त किया है। राज्य सरकार(निष्क्रांत) के धन का भी तत्कालीन अधिकारियों/कर्मचारियों की मिली भगत से दुर्विनियोग किया जाना परिलक्षित है। राम मिलन सिंह ने इस मामले में वसूली के साथ विधिक कार्रवाई करने का भी परामर्श दिया था।
इधर, हरिश्चंद्र वर्मा की रिट पर हाई कोर्ट की लखनऊ बेंच ने सुनवाई करते हुए 26 अक्टूबर 2016 को यूपी सरकार को एक हाई पावर कमेटी गठित करके 30 जनवरी तक जांच रिपोर्ट देने का आदेश दिया। कमेटी की जांच में पता चला कि राजस्व विभाग में जमीन का इंद्राज कराने के लिए मुहैया कराया गया नायब तहसीलदार चिनहट का आदेश फर्जी था। इसके बाद हाई कोर्ट ने आरोपी बुक्कल नवाब और मददगार अज्ञात लोगों पर एफआईआर दर्ज करने के आदेश दिए। इसके बाद वजीरगंज थाने में 420, 467, 468, 471 के तहत मामला दर्ज कराया गया। इसमें अज्ञात अधिकारियों को भी आरोपी बनाया गया।
दूसरी तरफ बुक्कल नवाब पर हुसैनाबाद स्थित घंटाघर पार्क के पास बुक्कल ने अनाधिकृत रूप से एकल आवासीय नक्शा पास कराकर मानक से इतर तीन मंजिला मकान बनवा लिया। सपा सरकार में रहने के दौरान बुक्कल को भू-माफिया घोषित करने वाली भाजपा के शासनकाल में इस इमारत को तोड़ने का आदेश एलडीए ने जारी किया, लेकिन भाजपा में शामिल होते ही सब कुछ ठंडे बस्ते में चला गया। पिछली सरकार में बुक्कल ने अपने रसूख का फायदा उठाते हुए मानक के विपरीत निर्माण कराया तो नई सरकार का साथी बनने के बाद इसे ठंडे बस्ते में डलवाने में सफल होते दिख रहे हैं। संभव है कि देर-सबेर समन शुल्क लेकर इसे कानूनीजामा पहना दिया जाए।
दूसरी तरफ बुक्कल नवाब पर एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच की जो कार्रवाई तेजी पकड़ रही थी, उनके भाजपा में शामिल होते ही कच्छप गति में बदल गई। इस बीच बुक्कन नवाब को 6.94 करोड़ रुपए की रिकवरी नोटिस जारी कर दिया गया तथा इस मामले की विवेचना वजीरगंज थाने से क्राइम ब्रांच को ट्रांसफर कर दी गई। इस मामले में जांच की जिम्मेदारी इंस्पेक्टर विनोद शर्मा को दी गई, लेकिन करीब साल भर होने के बावजूद अब तक चार्जशीट दाखिल नहीं हो पाई। साथ ही बुक्कल के भाजपा एमएलसी बन जाने के बाद क्राइम ब्रांच ने इसे बड़ी धनराशि का मामला बताते हुए इसकी जांच यूपी पुलिस की आर्थिक अपराध अनुसंधान शाखा ईओडब्ल्यू को कराने के लिए पत्र लिख दिया है। हालांकि अभी इस पर कोई निर्णय नहीं हो पाया है, लेकिन तय है कि अब यह जांच इधर से उधर होती रहेगी, जब दूसरी सरकार आएगी तो बुक्कल उसकी सवारी कर लेंगे।
बुक्कल का हिंदूत्व प्रेम
समाजवादी पार्टी की सवारी छोड़कर भाजपा के रहगुजर बने बुक्कल नवाब के भीतर हिंदुत्व अचानक जग गया है। भाजपा से एमएलसी का टिकट मिलने के बाद मजहर अली उर्फ बुक्कल नवाब हरजतगंज तथा अलीगंज स्थित हनुमान मंदिर पहुंचे तथा पूजा किया। हनुमान सेतु मंदिर पर जेठ के पहले मंगलवार को बुक्कल ने भंडारा भी लगवाया। बुक्कल में अचानक जन्मे हिंदू प्रेम को लेकर तमाम तरह की चर्चाएं हो रही हैं। बुक्कल के इस हिंदुत्व प्रेम से भाजपा के पुराने मुस्लिम नेता परेशान हैं। बुक्कल के इस रंग बदलने की क्षमता ने पुराने मुस्लिम भाजपाइयों को टेंशन में डाल दिया है। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि वह रंग बदलें तो कैसे बदलें?