: क्यों सिद्धू का पुतला फूंककर पुलिस से उलझने की जल्दी थी? : क्या युवा मोर्चा के प्रभारी को नहीं थी इस बात की जानकारी ?: लखनऊ। भाजयुमो अध्यक्ष सुभाष यदुवंशी की पुलिस ने धुनाई-कुटाई तो किया ही, अब उनके प्रदर्शन के समय को लेकर सवाल उठाए जाने लगे हैं कि जब पूरे देश में सात दिन का राष्ट्रीय शोक था तब क्यों भाजयुमो प्रदर्शन को लेकर इतनी हड़बड़ाहट में था? यादवजी प्रदर्शन को इतने उतावले क्यों थे? जब अटलजी के निधन के बाद भाजपा ने अपने सारे कार्यक्रम टाल दिए थे, तब कौन सी घी का मटका बहा जा रहा था कि सुभाष यदुवंश को सिद्धू का पुतला फूंकने की जल्दी थी। पुलिस से भिड़ने की जल्दी थी।
उल्लेखनीय है कि भारत रत्न पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के निधन के बाद पूरे देश में सात दिन का राष्ट्रीय शोक घोषित किया गया था। देश और प्रदेश स्तर पर भारतीय जनता पार्टी ने अपने सारे कार्यक्रम आगे लिए टाल दिए थे। इस स्थिति में कौन सा पहाड़ टूटा जा रहा था कि अगर नवजोत सिंह सिद्धू का पुतला नहीं फूंका जाता तो भूंकप आ जाता? क्यों भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष को पुतला फूंकने की जल्दी थी, वह भी उस समय काल में जब उनकी पार्टी के दिग्गज नेता का अवसान हुआ था?
सबसे बड़ी बात यह है कि भारतीय जनता युवा मोर्चा के प्रभारी प्रदेश महामंत्री एवं एमएलसी अशोक कटारिया को क्या इस बात की जानकारी नहीं थी? अशोक कटारिया खुद भाजयुमो के अध्यक्ष रह चुके हैं फिर ऐसा कैसे संभव हुआ कि अपने नेता के निधन पर घोषित शोक का भी ध्यान नहीं रखा गया? क्या बिना उनकी जानकारी में ही प्रदेश अध्यक्ष सुभाष यदुवंश ने राष्ट्रीय शोक घोषित होने के बावजूद यह कार्यक्रम आयोजित कर लिया? या फिर जानबूझकर यह पूरा खेल किसी योजना को अंजाम देने के लिए खेला गया?
दरअसल, सवाल इसलिए भी उठ रहे हैं कि जब पुलिस ने भाजयुमो के पदाधिकारियों को पुतला फूंकने दिया तब क्यों वो अपनी ही सरकार में जाम करने पर उतारू हो गए? क्या भाजयुमो प्रदेश अध्यक्ष किसी के निर्देश पर इस आंदोलन को करने पहुंचे थे या फिर उनकी अपनी योजना थी? क्यों हजरतगंज में जाम लगाने की कोशिश हुई फिर चौकी इंचार्ज को थप्पड़ मारा गया? क्या यह अपनी ही सरकार और उसके मुखिया को बदनाम करने की कोई साजिश थी? या फिर किसी के निर्देश पर जानबूझकर यूपी सरकार और पुलिस को अराजक साबित करने प्रयास था?
खैर, इस आंदोलन और उसके बाद हुए लाठीचार्ज के पीछे कारण जो भी रहे हों, लेकिन एक बात तो स्पष्ट हो गया कि वर्तमान भाजयुमो की टीम पुरानी टीम से बहुत कमजोर है। अध्यक्ष सुभाष यदुवंश को तो पुलिस ने ठोंका ही, कार्यकर्ताओं को भी कार्यालय तक दौड़ाकर ले गई। एक भी पदाधिकारी पुलिस से टकराने की हिम्मत नहीं दिखा सका। अध्यक्ष को पुलिस कूंचती रही और उनके पदाधिकारी-कार्यकर्ता अपनी जान बचाने के लिए नौ दो ग्यारह हो लिए। खुद अध्यक्ष यादवजी भी लाठी खाकर सरेंडर वाली मुद्रा में दिखे।
एक पुराने भाजपाई नाम ना छापे जाने की शर्त पर कहते हैं, ”बिना संघर्ष के नेता बने लोगों से इससे ज्यादा की उम्मीद नहीं करनी चाहिए। जिनका संघर्ष से कोई वास्ता ना रहा हो, उसे पद मिल जाए तो ऐेसे ही हालात बनते हैं। वो तो भला हो अपनी सरकार थी, सपा-बसपा की सरकार होती तो इनमें से कई तो इस्तीफा देने तक की सोच लेते।” वह आगे कहते हैं, ”यदि डा. लक्ष्मीकांत बाजपेयी के दौर वाली युवाओं की टीम होती तो पुलिस को पीछे हटना पड़ता। वो जुझारू टीम थी। वर्तमान टीम की तरह वो भागकर शौचालय या कार्यालय में नहीं छुप जाते।”