: खुद बनना चाहता था माननीय : लखनऊ : प्रेम प्रकाश सिंह उर्फ मुन्ना बजरंगी को जिन गोलियों को चलाने में आनंद आता था, उसी गोली ने उसे चिरनिद्रा में सुला दिया। इसी के साथ उसकी एक हसरत भी अधूरी रह गई, जो वह पूरा करने के लिए कई बार प्रयास कर चुका था। अपने या परिवार के किसी सदस्य को माननीय बनाने की हसरत। जरायम की दुनिया में नाम कमाने के बाद माननीय बनने का दौर तो अस्सी के दशक में हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र साही के दौर में ही शुरू हो गया था, लेकिन इसे रास्ता बनाया मुन्ना बजरंगी के कभी खासमखास रहे मुख्तार अंसारी ने।
दौर बदला तो बाहुबली मुख्तार अंसारी के साथ मुन्ना और मुख्तार के कट्टर दुश्मन बृजेश सिंह भी माफिया से माननीय बन गए, लेकिन मुन्ना बजरंगी की कोशिशों के बाद भी यह हसरत परवान नहीं चढ़ पाई। वह माननीय बनने से पहले ही मौत के आगोश में समा गया। मुख्तार और ब्रृजेश आज माननीय बनने के बाद उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जेलों में बंद हैं। वहीं से अपने साम्राज्य का संचालन भी कर रहे हैं। जेल के अंदर मुन्ना बजरंगी के मारे जाने के बाद एक बार फिर बजरंगी के खास अन्नू त्रिपाठी की जेल में हत्या चर्चा में आ गया।
पूर्वांचल में खौफ और गैंगवार का बड़ा नाम रहा मुन्ना बजरंगी के तार मायानगरी के अंडरवर्ल्ड से भी जुड़ा था। 90 की दशक में अपराध की दुनिया में नाम कमाने के बाद मुन्ना बजरंगी ने दाऊद के विरोधी गुट छोटा राजन के लिए काम करने लगा था। इसमें नैनी जेल में बंद बबलू श्रीवास्तव ने भी उसकी भरपूर मदद की। अपराध की दुनिया में नाम कमाने के बाद मुन्ना राजनीति में भी पैर जमाने की कोशिश कर रहा था। मुन्ना के इसी प्रयास के बाद मुख्तार और मुन्ना में दूरी आ गई थी।
गाजीपुर जिले के मोहम्मदाबाद विधानसभा क्षेत्र के भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की पूरी गाड़ी को गोलियों से छलनी करने वाला मुन्ना बजरंगी के जरायम का सितारा तो इस हत्याकांड से चमका ही, लेकिन उसका नाम पहली बार तब गूंजा था, जब उसने बनारस के नरिया तिराहे पर महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ के नवनिर्वाचित अध्यक्ष राम प्रकाश पांडेय बाबा और पूर्व अध्यक्ष सुनील राय समेत चार लोगों को सरेआम एके 47 की गोलियों से भून डाला था। इसके बाद जब 29 नवंबर 2005 को कृष्णानंद राय समेत सात लोगों को मौत की नींद सुला दिया तो इसका सिक्का जम गया।
पुलिस की डायरी में इंटरस्टेट गैंग नंबर 233 का सरगना मुन्ना बजरंगी ने मौत को उस समय मात दे दी, जब सरायबादली क्षेत्र में दिल्ली और यूपी पुलिस की संयुक्त टीम ने उसे गोलियों से छलनी कर दिया। 11 सितंबर 1998 की इस मुठभेड़ में पुलिस ने उसे मरा समझकर राम मनोहर लोहिया अस्पताल ले गई, जहां इस डॉन ने आंखें खोल दी। महीनों इलाज के बाद मुन्ना जिंदा बच गया। इसके बाद इसने कई घटनाओं को अंजाम दिया। ढलती उम्र में मुन्ना बजरंगी माननीय बनकर बाकी की जिंदगी चैन से जीना चाहता था, लेकिन उसके सारे अरमान अधूरे रह गए। बिना माननीय बने ही जेल में मौत की नींद सो गया।
मुन्ना वर्ष 2012 में जौनपुर की मडियाहूं विधानसभा सीट से अपना दल के टिकट पर चुनाव लड़कर 35 हजार वोटों के साथ तीसरे स्थान पर रह गया। 2017 में मुन्ना ने अपनी पत्नी सीमा सिंह को मडियाहूं सीट से निर्दल उम्मीदवार के तौर पर चुनाव मैदान में उतारा, लेकिन सीमा सिंह 21 हजार वोटों के साथ चौथे स्थान पर ही रह गईं। मुन्ना अपनी पत्नी को आगामी लोकसभा चुनाव में भी उतारना चाहता था, लेकिन उसकी कोशिशें अंजाम तक पहुंचती सुनील राठी गैंग ने जेल में ही मुन्ना को मौत की नींद सुला दिया।