राज बहादुर सिंह
: सोमनाथ चटर्जी के निधन पर उन्हें श्रद्धांजलि : दादा सोमनाथ चटर्जी अब नहीं रहे। सियासी तौर पर तो वह 14वीं लोक सभा का कार्यकाल समाप्त होने के साथ ही सबसे अलग हो गए थे लेकिन नश्वर संसार से उनका नाता 13 अगस्त 2018 को टूटा। टूट तो पहले ही बहुत कुछ चुका था अलबत्ता उनका निधन एक शानदार संसदीय व्यक्तित्त्व को खोना था जिसकी भरपाई आसान नहीं होगी।
खुद मैं इस कश्मकश में था कि इस मौके पर सोमनाथ दा के बारे में क्या लिखूं? उन्हें सर्वश्रेष्ठ सांसद का सम्मान मिला। वह दस बार लोक सभा के लिए चुने गए और अधिकांश वामपंथी सांसदों के तरह वह पढ़ लिख कर तैयारी के साथ सदन में आते थे और उन्होंने हमेशा ”नो नॉन सेंस मैन” की छवि बरकरार रखी।
बहरहाल चौदहवीं लोक सभा ने सोमनाथ के राजनीतिक जीवन मे इतनी उथल पुथल मचा दी कि इसकी इतिश्री ही हो गयी। यूपीए की अल्पमत सरकार को लेफ्ट ब्लॉक का समर्थन था और इसकी एवज में सरकार में न शामिल होकर लेफ्ट खेमे के लीडर सीपीएम ने लोक सभा अध्यक्ष पद लेकर इस पर सोमनाथ चटर्जी को आसीन करा दिया।
बहरहाल अमेरिका से परमाणु करार के मुद्दे पर सीपीएम ने सरकार से समर्थन वापस लेने का निर्णय किया तो पार्टी ने सोमू दा से भी स्पीकर पड़ छोड़कर सांसद के तौर पर सरकार के खिलाफ वोट देने को कहा। सोमनाथ चटर्जी इसके लिए तैयार नहीं हुए और कहा कि शक्ति परीक्षण तो बतौर अध्य्क्ष वही कराएंगे।
पार्टी लाइन को न मानने पर सीपीएम ने उन्हें दल से निकाल दिया और यूं अंत हो गया सोमनाथ दा के राजनैतिक जीवन का। दरअसल इस पूरे मामले में राजनीतिक सिद्धांतों पर पर्सनल ईगो भारी पड़ा। माना जाता है कि सीपीएम के जनरल सेक्रेटरी प्रकाश करात को लेकर सीनियर वामपंथी नेता सहज नहीं थे और सोमू दा की भी सोच ऐसी ही थी।
बहरहाल ईगो क्लैश तत्कालीन पीएम मनमोहन सिंह और प्रकाश करात के बीच भी था। मेरी अपनी राय में सोमू दा का सॉफ्ट कार्नर कांग्रेस के प्रति हो गया था और कहा जाता है कि कांग्रेस ने उन्हें प्रेजिडेंट बनाने का आश्वासन दिया था। इतिहास गवाह है कि ऐसा कुछ नहीं हुआ। वैसे मेरी निजी राय में सोमू दा को पार्टी लाइन के साथ रहना चाहिए था और उनके ऐसा न करने से सीपीएम को रणनीतिक नुकसान अवश्य हुआ। शर्मिंदगी उठानी पड़ी।
इस घटना के बाद अगले छह साल तक सत्ता में रही कांग्रेस ने प्रेजिडेंट तो दूर उन्हें उपराष्ट्रपति पद तक के लिए कंसीडर नहीं किया। मेरी जाती राय में प्रकाश करात से अपने ईगो के क्लैश के चलते सोमू दा कांग्रेस के ट्रैप में फंस गए। और कांग्रेस बे वही किया जो वह करती रही। धोखा देने के दस्तूर को कायम रखा। बहरहाल सोमनाथ चटर्जी एक बेहद योग्य जानकार और कुशल संसदीय शख्सियत थे। उनके निधन पर उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि।
राज बहादुर सिंह उत्तर प्रदेश के जाने माने पत्रकार हैं. हिंदी-अंग्रेजी पर समान पकड़ रखते हैं. दैनिक जागरण समेत कई बड़े संस्थानों में वरिष्ठ पदों पर रहे हैं. सियासत, फिल्म और खेल पर जबरदस्त पकड़ रखने वाले श्री सिंह फिलहाल पायनियर में वरिष्ठ पद पर कार्यरत हैं. उनका लिखा फेसबुक से साभार लेकर प्रकाशित किया गया है.